बचाव और सही इलाज के जरिये दमा के लक्षणों को काबू में किया जा सकता है
सुमन कुमार
अस्थमा यानी दमा एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में आम धारणा है कि ये वयस्कों को ही अपना शिकार बनाती है। हालांकि यदि आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो आपको धारणा बदलने की जरूरत है। एक हालिया अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि भारत में स्कूल जाना शुरू करने से पहले की उम्र के 35 फीसदी बच्चों में दमा के लक्षण पाए जाते हैं। इनमें से करीब दो तिहाई कुछ सालों में इन लक्षणों से उबर जाते हैं वहीं करीब 16.67 फीसदी बच्चे बाद में भी दमा का शिकार बने रहते हैं। जहां एक ओर प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक इन बच्चों में दमा होने की मुख्य वजह है वहीं जीवनशैली भी इसमें अहम भूमिका निभाती है। भारत में हर दस में से एक बच्चा दमा का शिकार पाया जाता है।
कब दिखते हैं लक्षण
जानने की बात ये है कि जहां बालपन का दमा भारत के बच्चों की सबसे आम गंभीर बीमारी है वहीं इसका पता लगाना उतना ही मुश्किल होता है। कुछ बच्चों में इसके लक्षण सिर्फ तभी दिखाई देते हैं जब वो ज्यादा शारीरिक कार्य या खेलकूद कर रहे होते हैं। बालपन का दमा ठीक नहीं किया जा सकता मगर सही दवाओं और उपचार की सही योजना से इसके लक्षणों को नियंत्रण में रखना संभव है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
गाजियाबाद की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर भारती झा कहती हैं कि दमा फेफड़ों से जुड़ी सांस की नलियों में इन्फ्लेमेशन के कारण होने वाली बीमारी है। इस इन्फ्लेमेशन के कारण सांस के रास्ते में तनाव होता है और ये संकरा हो जाता है और इसके कारण फेफड़ों में पर्याप्त हवा नहीं पहुंच पाती है और सांस लेने में परेशानी होने लगती है। बच्चों में दमा होने का कोई स्थापित कारण नहीं होता है मगर कई तात्कालिक कारण हो सकते हैं जैसे कि धूल, वायु प्रदूषण और बच्चों के आस-पास होने वाला धूम्रपान। दमा बच्चों के स्कूल से अनुपस्थित होने के सबसे बड़े कारणों में से एक है। अधिकांश बच्चों में दमा पांच साल की उम्र से पहले और इसमें से भी आधे से अधिक बच्चों में तीन साल की उम्र से पहले विकसित होता है।
लक्षण
बच्चों में दमा के लक्षण विशेष होते हैं। कुछ बच्चों में सांस लेते, खांसते समय सीटी बजने जैसी आवाज आ सकती है। इसके अलावा बच्चे को सांस लेने में जोर लगाना पड़ सकता है। बच्चा छाती में दर्द की शिकायत कर सकता है। कई बच्चों में एनर्जी की कमी, कमजोरी और थकान की शिकायत हो सकती है।
पता कैसे लगे
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल कहते हैं कि बच्चों में दमा का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा लक्षणों के पैटर्न के कारण होता है। हालांकि एक बार पता चलने पर इसपर नियंत्रण किया जा सकता है। बच्चे के खानपान, प्रदूषण से बचाव करके और दवाइयों के जरिये बच्चे को सामान्य जीवन दिया जा सकता है। बच्चों में इलाज का लक्ष्य इस बीमारी को क्रॉनिक और ज्यादा समस्यामूलक होने से रोकना और बच्चे को अस्पताल में भर्ती किए जाने की स्थिति आने से बचाना होता है।
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